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HALDI RASM – शादी में हल्दी रस्म

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शादी में बेफिजूल खर्चे  महंगी शादी करके जीवन भर की पूंजी लुटाना समझदारी है क्या ? दो दिन की तामझाम, शरमा- शरमी और लोक दिखावे में अपने बच्चो का भविष्य खराब मत कीजिए। पैसा कमाना बहुत मुश्किल है,  आने वाला समय और चुनौतीपूर्ण है। महंगा प्री-वेडिंग, महंगी ग्रैंड एंट्री, महंगा इवेंट, महंगा हनीमून, महंगे केटरर्स, महंगे पकवान, महंगे गिफ्ट, महंगे सेट, डेकोरेशन, पटाखे, महंगे संगीत कार्यक्रम, नए-नए चोंचले और सीरियल के देखादेखी शादी के कार्यक्रम। महंगे पहनावे, महंगी शॉपिंग सब क्षणिक दिखावे के रूप में विनाश के स्वरुप हैं। वक्त रहते संभल जाइए वरना आने वाला वक्त आपको संभलने का मौका भी नही देगा।

वर्त्तमान की हल्दी रस्म और खर्चा आज कल ग्रामीण और शहरी परिवेश में होने वाली शादियों में एक नई रस्म का जन्म हुआ है।हल्दी रस्म के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन किया जाता है, उस दिन दूल्हा या दुल्हन व पूरा परिवार, रिश्तेदार विशेष पीत (पीले) वस्त्र धारण करते हैं।

HALDI RASM - शादी में हल्दी रस्म
                         HALDI RASM – शादी में हल्दी रस्म

पुराने समय की हल्दी की रस्म पुराने समय में  जरूर दूल्हे दुल्हन के चेहरे व शरीर की मृत त्वचा हटाने, मुलायम करने व चेहरे को गोरा और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटे, दूध आदि का उबटन बनाकर शरीर पर लगाया जाता था। पुराने समय में ना तो आज की तरह साबुन व शैम्पू थे ना ही ब्यूटी पार्लर। हल्दी के उबटन से ही  दूल्हे दुल्हन को गोरा किया जाता था। वो रस्म साधारण तरीके से शादी वाले दिन ज़रूर निभाई जाती रही है। लेकिन आजकल की हल्दी रस्म मोडिफाइड हो गई है। जिसमें हजारों रूपये खर्च कर डेकोरेशन किया जाता है। महंगे पीले वस्त्र पहने जाते हैं। और यह पीला ड्रामा किया जाता है।

गरीब समाज और हल्दी की रस्म

आजकल देखने में आ रहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लड़के भी इस दिखावे में शामिल होकर परिवार को कर्ज के बोझ में धकेल रहे हैं। क्योंकि उन्हें अपने दोस्तों को अपना ठस्का दिखाना होता है। इंस्टाग्राम, फेसबुक, आदि के लिए रील बनानी होती है। बेटे के रील बनाते बनाते बाप बेचारा रेल बन जाता है। ऐसे ऐसे घरों में फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिन घरों में घर के नाम पर छप्पर है, घर की किवाड़ी नहीं है, बाप ने पसीने की पाई पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया तो छत नहीं है, छत है तो प्लास्टर नहीं, प्लास्टर है तो दरवाजा नहीं है, बाप के पास पहनने के लिए चप्पल नहीं है, मां के ओढ़ने के लिए ढंग की चुनरी नहीं है, लेकिन बच्चे मां बाप की हैसियत के विपरित जाकर अनावश्यक खर्चा जरूर करते हैं। सूखे दिखावे के चक्कर में मां बाप को कर्ज में धकेल देते हैं। ऐसे बच्चों के सैकड़ों ऐसे ही लूखे दोस्त होते हैं जिन्हें ये लोग प्यार से  ब्रो कहते है। शादी विवाह में अपना स्टेटस बनाने के लिए जिसको ढंग से जानते भी नहीं उन्हें भी शादी में इन्वाइट करेंगे। किसी से सिफारिश लगाकर प्रधान, विधायक और नेताओं को बुलाते हैं ताकि गांव में इनका ठस्का जमे। बहुत सारी गाड़ियां घर के आगे खड़ी देखने की उत्कंठा रखते हैं। किसी को बुलाए कोई आपत्ति नहीं लेकिन उन बड़े लोगों के साथ फोटो सेल्फी लेने में और उनके आगे पीछे घूमने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि घर आए जीजा, फूफा, नाना, नानी, बहन, बुआ, अड़ोसी-पड़ोसी को चाय पानी का भी पूछना उचित नहीं समझते। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए। आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे मां-बाप से कहते है आप कुछ नहीं समझते। उन्हें उपमा देते हैं  ‘घोना, धण।’  मैं जब भी यह सुनता हूं पांवों के नीचे जमीन खिसक जाती हैं। बड़ी चिंता होती है कि, हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है।

लेखक का कहना —

मेरा आप सभी लोगो से जो मेरी पोस्ट पढ़ रहे है उनसे यही कहना है की शादी  में कम से कम खर्चा करे /मुझे पता है आप लोग सोच रहे होंगे की शादी तो एक बार होती है उसमे खर्चा नही करेंगे  तो कब क्ल्रेंगे लेकिन आगे  के समय को देख कर  खर्च करो  अपने माँ बाप से पूछो उन्होंने कैसे धन इक्कठा किया है

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