नई सामाजिक बीमारी-रिसोर्ट में विवाह
दो तीन तरह की श्रेणिया
आजकल रखी जाने लगी हैं, किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है। किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है।किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है।इस आमंत्रण में अपनेपन की भावना खत्म हो चुकी है।सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है।महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं। मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं। मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है। जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है लोअर केटेगरी का मानते हैं।फिर हल्दी की रस्म आती है इसमें भी सभी को पीली ड्रेस पहनना अति आवश्यक है। इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है ।इसके बाद वर निकासी होती है इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में एक घंटे डिस्कशन करते हैं, वह बारात प्रोसेशन में नाच गाने पर नोटों की गड्डी उड़ा देते हैं।
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इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है।
समाज पर प्रभाव
आजकल एक और नया चलन शुरु हुआ है जितने भी रिश्तेदार शादी में आते हैं, प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं।दूरदराज से, बरसों बाद आए रिश्तेदारों की एक दूसरे से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है। क्योंकि सब अमीर हो गए हैं, पैसे वाले हो गए हैं।मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है। रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं। सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं। और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है। कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता।वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरों में ही गुजार देते हैं।हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है।
मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है कि-
आपका पैसा है, आपने कमाया है, आपके घर खुशी का अवसर है तो खुशियां मनाएं।पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं।कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को, अपने स्वाभिमान को खत्म मत करिये। जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्च करिये।4-5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है।दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए। बच्चों से भी यही अपेक्षा है कि अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिये और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए।